December 6, 2025

सब का भला, मेरा फिर अधिक भला

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आज की शुरुवात मेरे भलाई से हो… जी समझे
सब मे निहीत है मेरा भला. जिस तरह से खेत मे फसल होगी. मुझे भी मिलेंगा. आखिर सब मे मै निहीत हूं. आज के हमारे मित्र और एक वक्त के हमारे अफसर श्री. बोकरे साहेब की एक भेजी पोस्ट प्राप्त हुयी. देखते ही मन भर आया. गरम हवा इन दिनो मुंबई मे चल रही है. उपर से गरम हवा मेरे सुट का पंखा पूरे कमरे मे फहरा रहा था. आप किमी भी और बैठो. सोने मे भी गरम हवा ही आयेगी. मौसम तो नही पर हवा जो इन दिनो चल रही है.
हमारे फोर्ट स्थित सरकारी गेस्ट हाऊस मे “एसी ” उपलब्ध नही है. मै खुला हाप चड्डी पर ही बैठा ही था. (वैसे हाप चड्डी महाराष्ट्र मे कोकणी लोगोका अपना पोषाक है. और बहार गाव से घुमने आने वाले का पोषाक बेलमोडा है. चड्डी पहने बाहर निकलो किसी दुकानदार की आपसे हुज्जत करने की उसकी मजाल नही. और भैय्या तो दो-चार बस्ती मे से सैनिक ले आप आओगें करके आपसे डर के ही बात करेंगे. बराबर है! भैय्या की दुकान भैय्या को बंद थोडी करना है. वैसे यहा बाळ ठाकरे तथा राज ठाकरे के व्यक्तित्व से यहा मुंबई मे कौनसा भैय्या अपरिचित रहा है.) मुझे श्री. बी. एम. बोकरे साहाब ने भेजी एक पोस्ट प्राप्त हुयी. साहाब ने पोस्ट व्दारा सबका भला होने का संदेश मेरी मोबाईल मे भेजा. पहले नजर मे संदेश तो मिला किन्तु फुल-पौधा की हरियाली देखकर प्रसन्नता हुयी. रंग भरा पिला कलर ने दिल खुश कर दिया. और सारी मुबंई की उब मुझमे नष्ट हो गयी.
महावीर या बुध्द कौन है. बिचार मेरा तनिक डगमगाया. और एम. पी. साहाब याद आऐ. जैन व्यक्ती के घर बौध्द की मुर्ती देख मै अपनी मूर्खता उजागर कर बैठा. स्वर्गीय महेंद्र पोपटलाल शहा जी ने मलबार हिल स्थीत घर मे उन्होने मुझे मैरे गलती पर समजाया _
“बुद्ध और महावीर वैसे समकालीन व्यक्ती है. गलती नही आपकी. पूर्ण रूप मे समझने की एक एक की अपनी प्रव्रुत्ती है. बुध्द आपको अपना हाथ निचेकी ओर करते दिखाई देते है, जब की महावीर की अपनी हथेली आशीर्वाद करती ऊन के चित्र मे दिखाई देती है.”
मेरे ज्ञान मे आ गया. सफेद कपडे मे 100-200 कार्यकर्ता की भीड़ कल मुझे कलानगर, बांद्रा जो दिखाई वह रामदास आठवले जी के नेतृत्व वाली ही भीड़ थी. वैसे एक विलक्षण बात दिखाई दी. मातोश्री मे तथा बांद्रा स्थित सरकारी डाक बंगले मे कुल चार घर का फैसला है. पिछले वक्त मै इस गेस्ट हाऊस मे रूका था तब पोलीस भीड़ अधिक दिखाई दी. आज वहा ऊस जगह पर पुलीस की भीड़ नही आठवले की जयजयकार की नीव जो थी.
उध्दव ठाकरे और रामदास आठवले आज के दिनो मे समकालीन है. उध्दव जी सी.एम. बननेके बाद अपने परिसर को लुप्त कर बैठे वही परिसर मे आठवले जी चारचांद लगाने मे कामयाब हुये. वैसे दोनो यह महारथी बांद्रा ईस्ट, मुंबई के ही रहनेवाले है. दोनो के अपने कार्यकर्ते है. भविष्य मे कौन क्या बनते है. महापुरुष या नामांकित या फिर भगवान या मसीहा. दोनो ही मराठी माणूस है और एकही जगह के, एक गाव एक बस्ती. दोनो के बंगले अगर बगल के रोड पे.
मैने जैन और महावीर की तस्वीर देखी है. बहुत कुछ सुना है. तथ्य पर विश्वास करना ठीक लगता नही. पर संकेत को भी झुटलाया नही जाता. सत्य नही ! हमे मनुष्यता दिखाना है. हम बुध्द हो या जैन. किंतु हम मनुष्य ही तो है. कहते है “कल की बात पुरानी _ नये दोर मे लिखेंगे हम मित्लकर नयी ” एक मनुष्य पंथ ” कहानी. शरद बोरकर

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